कनिष्क प्रथम
कनिष्क प्रथम कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक हुआ।उसमें चंद्रगुप्त जैसी वीरता और अशोक जैसा धार्मिक जोश था। कुषाण सम्राटों वह सर्व शक्तिशाली तथा महान था।
कनिष्क की विजये
सम्राट कनिष्क ने अपने पिता के साम्राज्य को विशाल करने का प्रयास किया। तीनों दिशाओ साम्राज्य विस्तार किया इसी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर उसने उत्तर उत्तर दक्षिण और पूर्व तीनों दिशाओं अपनी विजयों द्वारा अपने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।
मगध की विजय - चीनी और बौद्ध श्रोताओं के आधार पर यह कहा जाता है कि कनिष्क ने मगध पर आक्रमण किया था और उसे विजिट किया था। तारा नाथ के अनुसार युद्ध का हर्जाना मांगने पर मगध नरेश ने बौद्ध विद्वान अश्वघोष तथा बुद्ध का शिक्षा कमंडल दे दिया था। कनिष्क के सिक्के गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर ,पटना ,वैशाली ,राजगीर, सुल्तानगंज और बंगाल आदि स्थानों पर मिले हैं। इससे मगध पर उसकी विजय का अनुमान लगाया जा सकता है। कनिष्क अश्वघोष से बहुत प्रभावित हुआ तथा उसकी प्रेरणा से ही उसने बौद्ध धर्म को धारण किया था।
शक- क्षत्रपो के साथ युद्ध
कनिष्का को पश्चिमी क्षेत्र के शक क्षत्रपो से भी युद्ध करना पड़ा। यह युद्ध उसके शासन के 11 वे वर्ष में हुआ था । परंतु उसने उनके प्रदेशों को कुषाण साम्राज्य में नहीं मिलाया था।
चीन के साथ युद्ध
कुषाण शासक कनिष्क चीन की एक ही जाति का उत्तराधिकारी था। उसके वंशजों को वहां से अपमानित करके भगा दिया गया था। कनिष्क अपने पूर्वजों के अपमान का बदला लेना चाहता था। चीन में इस समय हान वंश का शासन था। उसने मान वंश नरेश होती को कर देना बंद कर दिया और स्वयं देवपुत्र की उपाधि धारण की उसने अपना एक दूत चीनी सम्राट के पास भेजा और उससे कब आया कि वह अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दे। चीनी सम्राट ने इसे अपना अपमान समझते हुए दूत को कैद कर लिया। इस घटना के बाद कनिष्क ने अपने सेनापति को एक विशाल सेना के साथ चीन पर आक्रमण के लिए भेज दिया। चीनी सम्राट होती का सेनापति पांन- चाऊ बहुत शक्तिशाली और योग्य था। परंतु रास्ते में ठंड की वजह से कनिष्क की सेना को बहुत नुकसान हुआ और उसकी पराजय हुई।इस पराजय के बाद कनिष्क कर देना स्वीकार किया परंतु वह इस पराजय से हताश नहीं हुआ। कनिष्क अपनी हार के बदला लेने के लिए विशाल सेना तैयार की और इस बार सेना का नेतृत्व स्वयं किया। इस समय चीनी सेनापति पान -चाऊ की मृत्यु हो चुकी थी । जिसका लाभ कनिष्क को हुआ और यह युद्ध कनिष्क के पक्ष में चला गया। उसने खेतान ,याश्कंद , तथा काशगर के प्रदेशों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
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