बौद्ध धर्म की जिस गति से उन्नत हुई थी उसी गति से उसका पतन भी हुआ । बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रसार आंधी के समान हुआ था और भारत से उसी प्रकार से अदृश्य भी हो गया। भारत पर मुस्लिम साम्राज्य के अधिकार के पश्चात तो यह समाप्त ही हो गया।
बौद्ध धर्म के पतन के कारण
1. बौद्ध धर्म के स्वरूप में परिवर्तन- महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित धर्म सरल व व्यावहारिक था , किन्तु कालांतर में उसमे इतना परिवर्तन हो गया कि उसका मौलिक स्वरूप हिंबदल गया । जिन कुरीतियों व प्रथाओं का महात्मा बुद्ध ने विरोध किया था,व बौद्ध धर्म में भी आ गई। बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा का विरोध करता था किन्तु कालांतर में महात्मा बुद्ध की ही पूजा की जाने लगी। इसके अतिरक्त, बौद्ध धर्म दो भागों में बांट गया - हीनयान व महायान, अतः बौद्ध धर्म की एकता समाप्त हो गई।
2.राज - प्रश्रय की समाप्ति- बौद्ध धर्म की उन्नत के लिए उसे प्राप्त राज प्रश्रय एक प्रमुख कारण था । बौद्ध धर्म के विकास में अनेक राजाओं ने अधिक योगदान दिया था। उदाहरणार्थ मौर्य सम्राट अशोक व कुषाण शासक कनिष्क ने बौद्ध धर्म को ना केवल राजकीय संरक्षण दिया बल्कि उसे राजधर्म घोषित किया था। कुषाणवंश के शासन के पश्चात अन्य र अजवंशो ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया।
3. ब्राम्हण धर्म का पुनरुत्थान- बौद्ध धर्म के पतन में ब्राम्हण धर्म के पुनरुत्थान ने भी सहयोग दिया। मौर्य शासकों के पश्चात भारत में शुंग व कण्व वंश के शासकों ने शासन किया जो ब्राम्हण धर्म को संरक्षण दिया व उसकी उन्नति के लिए सहायता दी इसी प्रकार गुप्त वांशीय शासक भी ब्राम्हण धर्म के अनुयायी थे , जिन्होंने हिन्दू धर्म को न केवल राजधर्म बनाया बल्कि संस्कृ को राजभाषा घषित किया। इस प्रकार ब्रम्हाण धर्म के पुनरुत्थान से बौद्ध धर्म अवनति कि ओर अग्रसर होने लगा।
4. बौद्ध धर्म का सम्प्रदायों में विभाजित होना- महात्मा बुद्ध ने जिस धर्म की स्थापना की थी उसकी कोई शाखा न थी।किन्तु पांचवीं सदी तक बौद्ध धर्म 18 सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था , जिसमे प्रमुख हीनयान, महायान, वजृयान आदि थे। इन सम्प्रदायों के विचारों में पारस्परिक मतभेद था इसमें सदैव संघर्ष होता रहता था। यद्पि बौद्ध धर्म में उत्पन्न मतभेदों कों दूर करने के लिए चार बौद्ध संगीतिया की गई , लेकिन उनसे भी विशेष लाभ न हुआ। अतः बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित हो जाने के कारण इस धर्म की प्रगति रुक गई।
2.राज - प्रश्रय की समाप्ति- बौद्ध धर्म की उन्नत के लिए उसे प्राप्त राज प्रश्रय एक प्रमुख कारण था । बौद्ध धर्म के विकास में अनेक राजाओं ने अधिक योगदान दिया था। उदाहरणार्थ मौर्य सम्राट अशोक व कुषाण शासक कनिष्क ने बौद्ध धर्म को ना केवल राजकीय संरक्षण दिया बल्कि उसे राजधर्म घोषित किया था। कुषाणवंश के शासन के पश्चात अन्य र अजवंशो ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया।
3. ब्राम्हण धर्म का पुनरुत्थान- बौद्ध धर्म के पतन में ब्राम्हण धर्म के पुनरुत्थान ने भी सहयोग दिया। मौर्य शासकों के पश्चात भारत में शुंग व कण्व वंश के शासकों ने शासन किया जो ब्राम्हण धर्म को संरक्षण दिया व उसकी उन्नति के लिए सहायता दी इसी प्रकार गुप्त वांशीय शासक भी ब्राम्हण धर्म के अनुयायी थे , जिन्होंने हिन्दू धर्म को न केवल राजधर्म बनाया बल्कि संस्कृ को राजभाषा घषित किया। इस प्रकार ब्रम्हाण धर्म के पुनरुत्थान से बौद्ध धर्म अवनति कि ओर अग्रसर होने लगा।
4. बौद्ध धर्म का सम्प्रदायों में विभाजित होना- महात्मा बुद्ध ने जिस धर्म की स्थापना की थी उसकी कोई शाखा न थी।किन्तु पांचवीं सदी तक बौद्ध धर्म 18 सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था , जिसमे प्रमुख हीनयान, महायान, वजृयान आदि थे। इन सम्प्रदायों के विचारों में पारस्परिक मतभेद था इसमें सदैव संघर्ष होता रहता था। यद्पि बौद्ध धर्म में उत्पन्न मतभेदों कों दूर करने के लिए चार बौद्ध संगीतिया की गई , लेकिन उनसे भी विशेष लाभ न हुआ। अतः बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित हो जाने के कारण इस धर्म की प्रगति रुक गई।
अदभुत है आर्टिकल
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