सिकंदर के आक्रमण के प्रभाव-
सिकंदर भारत में 19 महीने तक रहा था । वह आंधी की तरह भारत में आया व तूफान की तरह भारत से चला गया । विद्नो का मानना है कि सिकंदर का किसी बड़े राज्य से सामना नहीं हुआ था तथा उसका भारत में प्रवास इतना अल्पकालीन था कि भारत पर उसका कुछ भी प्रभाव होना संभव न था । राधा मुकुद मुकर्जी ने लिख है ,"सिकंदर के भारतीय अभियान न ने साहित्य, जीवन अथवा शासन किसी पर भी कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़ा।
सिकंदर के आक्रमण के निमनलिखित प्रभाव हुए-
1. राजनीतिक- सिकंदर के आक्रमण का सबसे प्रमुख प्रभाव राजनीतिक हुआ , क्युकी इसने भारत की राजनीतिक एकत
के लिए मार्ग प्रशस्त किया। सिकंदर ने उत्तर - पश्चिम भारत के छोटे छोटे राज्यो को जीकर यह साफ कर दिया कि विदेशी शक्ति का सामना करने के लिए राजनीतिक एकता आवश्यक है । डॉ. हेमचंद्र रॉय चौधरी ने लिखा है कि जिस प्रकार पूर्वी भारत में धननंद के राजनीतिक एकता स्थापित करने में चन्द्रगुप्त के कार्य को आसन बनाया था उसी प्रकार उत्तर - पश्चिमी भारत के राज्यो की शक्ति को चूर- चूर कर दिया था , अतः चन्द्रगुप्त को उं प्रदेशों में विजय प्राप्त करने में सरलता हुई ।
2. तिथिक्रम- युनानी आक्रमण का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि इसने प्राचीन भारत के तिथिक्रम की अनेक गुत्थियों को सुलझा दिया । इससे भारत के क्रमागत इतिहास को लिखने में बड़ी सहायता मिली । युनानी लेखकों ने महत्त्वूर्ण घटनाओ व शासकों की तिथियों का उल्लेख किया है तथा जगह - जगह समकालीन भारतीय शासकों का भी , अतः भारतीय तिथिक्रम पर युनानी साहित्य से प्रकाश पड़ता है।
3. सांस्कृतिक प्रभाव- सिकंदर के आक्रमण के परिणाम स्वरूप भारतीय व युनानी परस्पर संपर्क में आये, अतः उनमें सांस्कृतिक आदन प्रदान होना स्वाभाविक था । यूनानियों ने भारतीयों को के ज्योतिष कला तथा सिक्के बनाने की कला के क्षेत्र में प्रभावित किया । यूनानियों को सुंदर सिक्के (मुद्राएं) बनाना आता था , अतः भारतीयों ने भी उनसे अच्छे बनाना सीखा । यूनानियों पर भी भारतीय दर्शन व धर्म का प्रभाव हुआ ।
4. नगरों का विस्तार एवं शिल्पियों की संख्या में वृद्धि- उत्तर पश्चमी भारत और पश्चिमी एशिया के मध्य व्यापार की संभावनाओं ने नगरों के विकास को प्रोत्साहित किया। नगरों के विस्तार के साथ साथ शिल्पियों की संख्या में भी वृद्धि हुई जो ' श्रेणियों' में संगठित थे । प्रत्येक श्रेणी नगर के एक निश्चित भाग में बसी हुई थी, जिससे एक श्रेणी के सदस्य एक साथ रहकर कार्य कर सके । ज्यादा तर लोग वंशानुगत व्यवसाय अपनाते थे।
5. व्यापारिक प्रभाव- यूनान की मुख्य भूमि से चलकर युनानी सेना पश्चिम एशिया तथा ईरान को पार करती हुई भारत पहुंची थी और इस प्रकार उसने अफगानिस्तान तथा ईरान होते हुए एशिया माइनर से और पूर्वी भू मध्य सागर के किनारे बसे बंदरगाहों से उत्तर पश्चिम भारत तक अनेक व्यापारिक मार्ग खोल दिए और उन्हें उपयोगी बना दिया इससे पूर्व पश्चिम के व्यापार में वृद्धि हुई।
4. नगरों का विस्तार एवं शिल्पियों की संख्या में वृद्धि- उत्तर पश्चमी भारत और पश्चिमी एशिया के मध्य व्यापार की संभावनाओं ने नगरों के विकास को प्रोत्साहित किया। नगरों के विस्तार के साथ साथ शिल्पियों की संख्या में भी वृद्धि हुई जो ' श्रेणियों' में संगठित थे । प्रत्येक श्रेणी नगर के एक निश्चित भाग में बसी हुई थी, जिससे एक श्रेणी के सदस्य एक साथ रहकर कार्य कर सके । ज्यादा तर लोग वंशानुगत व्यवसाय अपनाते थे।
5. व्यापारिक प्रभाव- यूनान की मुख्य भूमि से चलकर युनानी सेना पश्चिम एशिया तथा ईरान को पार करती हुई भारत पहुंची थी और इस प्रकार उसने अफगानिस्तान तथा ईरान होते हुए एशिया माइनर से और पूर्वी भू मध्य सागर के किनारे बसे बंदरगाहों से उत्तर पश्चिम भारत तक अनेक व्यापारिक मार्ग खोल दिए और उन्हें उपयोगी बना दिया इससे पूर्व पश्चिम के व्यापार में वृद्धि हुई।
Oh its ana amazing article
ReplyDeleteAlso check it
https://shirdisaiba.blogspot.com/2020/06/sai-stavan-manjari.html?m=1